महाभारत का एक अत्यंत चर्चित प्रसंग है – एकलव्य और द्रोणाचार्य का संवाद। परंतु क्या हम इसे केवल एक जातिगत भेदभाव के रूप में देखना उचित है? या इसके पीछे गहरे राजनीतिक और धर्म-संगत कारण छिपे थे?
🔷 एकलव्य कौन था?
कुछ कथाओं में एकलव्य को निषादराज हिरण्यधनु का पुत्र बताया गया है, तो कुछ मान्यताओं के अनुसार वह वृष्णि वंशी क्षत्रिय था और वासुदेव (श्रीकृष्ण के पिता) के भाई देवश्रवा का पुत्र था।
✔️ यदि यह मान्यता सत्य हो, तो एकलव्य को शूद्र या सामाजिक दृष्टि से निम्न मानना ही त्रुटिपूर्ण है।
🔷 तो फिर द्रोणाचार्य ने शिक्षा क्यों नहीं दी?
द्रोणाचार्य केवल एक शिक्षक नहीं थे। वे हस्तिनापुर के राजगुरु थे, जिनकी निष्ठा कुरु वंश और राज्य की सुरक्षा के प्रति थी। उन्होंने जो निर्णय लिया, वह तीन मुख्य कारणों पर आधारित था:
✅ 1. राजनीतिक दृष्टिकोण
एकलव्य एक शत्रु राज्य (निषादों) का राजकुमार था।
➡️ एक सामरिक दृष्टि से यह पूरी तरह अनुचित होता कि राजगुरु शत्रु पक्ष को अस्त्र-शस्त्र की विद्या सिखाएँ।
✅ 2. धर्म और कर्तव्य
महाभारत में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि द्रोणाचार्य ने “धर्मज्ञ” के रूप में कार्य करते हुए कौरवों की ओर देखकर निर्णय लिया – यह प्रमाण है कि उन्होंने अपने निर्णय में धर्म और दायित्व का पालन किया।
✅ 3. भविष्य की आशंका
इतिहास बताता है कि एकलव्य आगे चलकर जरासंध और शिशुपाल जैसे पांडव-विरोधियों के साथ खड़ा हुआ।
➡️ यदि उसे सामरिक शिक्षा मिलती, तो वह भविष्य में हस्तिनापुर के लिए गंभीर खतरा बन सकता था।
🔷 क्या अंगूठा माँगना उचित था?
कुछ विद्वानों का मानना है कि द्रोणाचार्य द्वारा अंगूठा माँगना प्रतीकात्मक या बाद की जोड़ हो सकती है, जो लोककथाओं में उभरा।
🔹 मूल महाभारत में यह प्रसंग सीमित है और उसका स्वरूप द्रोण की छवि नकारात्मक दिखाने के लिए बाद में बढ़ाया गया हो सकता है।
🔷 कुत्ते के मुंह में तीर – कौशल या क्रूरता?
एकलव्य ने बिना आवाज किए कुत्ते का मुंह तीरों से बंद कर दिया — यह भले ही एक महान निशानेबाजी हो, लेकिन एक निर्दोष जीव पर यह प्रयोग द्रोणाचार्य जैसे धर्मज्ञ के लिए अनैतिक आचरण जैसा प्रतीत हो सकता है।
📜 निष्कर्ष
✅ द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा नहीं दी क्योंकि:
- वह शत्रु पक्ष का था
- द्रोणाचार्य की निष्ठा हस्तिनापुर के प्रति थी
- धर्म, नीति और राज्य सुरक्षा के अनुसार यह निर्णय उचित था
❌ यह निर्णय जातिगत या सामाजिक भेदभाव पर आधारित नहीं था, जैसा आधुनिक दृष्टिकोण कभी-कभी बताता है।